देहरादून में लॉकडाउन के बीच शहर में कई ऐसे भी परिवार हैं जो खुले में जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। उनके लिए धरती ही बिछौना है और आसमान ही छत है। दिनभर में मजदूरी करके किसी तरह दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पाता है। मगर, इन दिनों कोरोना वायरस के चलते इन लोगों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो रहा है। काम है नही तो खाने के लाले पड़ने लगे हैं। अब उनकी भी उम्मीद जवाब देने लगी है। ऐसे में वह भगवान से ही मदद मांगने को मजबूर हैं।
ओगल भट्टा बस्ती में रहने वाले 70 वर्षीय नंदू लाल का कोई नही है। वह अकेले ही रहते हैं। दिनभर मजदूरी करके जो 100-150 रुपये मिल जाते हैं, उसी से तीनों समय का गुजर-बसर करते हैं। लेकिन, अब पिछले पांच दिनों से वह काम पर नहीं जा सके हैं। उनके घर पर खाने को एक दाना तक नहीं बचा है। कई दिन उन्हें भूखे पेट भी दिन गुजरना पड़ा है। अच्छी बात है कि अब कुछ समाजसेवियों ने इंसानियत दिखाते हुए मदद का हाथ बढ़ाया है।
ओगल भट्टा बस्ती में रहने वाले 70 वर्षीय नंदू लाल का कोई नही है। वह अकेले ही रहते हैं। दिनभर मजदूरी करके जो 100-150 रुपये मिल जाते हैं, उसी से तीनों समय का गुजर-बसर करते हैं। लेकिन, अब पिछले पांच दिनों से वह काम पर नहीं जा सके हैं। उनके घर पर खाने को एक दाना तक नहीं बचा है। कई दिन उन्हें भूखे पेट भी दिन गुजरना पड़ा है। अच्छी बात है कि अब कुछ समाजसेवियों ने इंसानियत दिखाते हुए मदद का हाथ बढ़ाया है।
साहब, हमेशा मेहनत का खाया, आज दूसरों पर निर्भर
साहब, मुझे मेहनत करके खाना पसंद है। हमेशा मेहनत से जितना भी मिला, उतने में खुश रहा। लेकिन, आज पहली बार किसी दूसरे पर आश्रित होना पड़ रहा। क्या करूँ, चाहकर भी काम पर नही जा पा रहा हूँ। घर पर राशन खत्म है। बच्चे भूखे मर रहे हूं और चारा भी नहीं। कुछ ऐसी ही पीड़ा है टर्नर रोड निवासी 56 वर्षीय रोहतास की।
रोहतास ने कहा कि वह पेशे से मौची हैं। टर्नर रोड पर सड़क किनारे बैठते हैं। लेकिन, कोरोना वायरस के चलते उनका काम छीन गया है। वह रोजाना 200 से 300 रुपये कमाते थे। उसी से घर मे राशन लाते थे। आज राशन लाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि वह खुद तो अकेले रह सकते हैं। लेकिन, बच्चों को भूखे रहते देख बहुत तकलीफ होती है। उन्होंने सरकार से जरूरतमंद लोगों की मदद की मांग की।
मदद को आगे आये अरुण
अपने सपने संस्था के संस्थापक अरुण यादव इन जरूरतमंदों की मदद को आगे आए हैं। उन्होंने इन लोगों को अगले कुछ दिनों तक का राशन मुहैया कराने का जिम्मा उठाया है। अरुण ने कहा कि उनकी संस्था क्षेत्र में जरूरतमंद लोगों को राशन बांटने का काम कर रही है।
रोहतास ने कहा कि वह पेशे से मौची हैं। टर्नर रोड पर सड़क किनारे बैठते हैं। लेकिन, कोरोना वायरस के चलते उनका काम छीन गया है। वह रोजाना 200 से 300 रुपये कमाते थे। उसी से घर मे राशन लाते थे। आज राशन लाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि वह खुद तो अकेले रह सकते हैं। लेकिन, बच्चों को भूखे रहते देख बहुत तकलीफ होती है। उन्होंने सरकार से जरूरतमंद लोगों की मदद की मांग की।
मदद को आगे आये अरुण
अपने सपने संस्था के संस्थापक अरुण यादव इन जरूरतमंदों की मदद को आगे आए हैं। उन्होंने इन लोगों को अगले कुछ दिनों तक का राशन मुहैया कराने का जिम्मा उठाया है। अरुण ने कहा कि उनकी संस्था क्षेत्र में जरूरतमंद लोगों को राशन बांटने का काम कर रही है।